Tuesday 4 September 2012

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उम्र के साथ साथ हम सब की जरूरते भी बदलती रहती हैं और लालसा भी. मै  अनु अभी इसी साल बारहवी कक्षा में आई हूँ और मेरे शारीर के साथ हो रहे परिवर्तनों के साथ ही मेरे मन में भी सेक्स को ले कर अजीब अजीब से भाव आते जाते रहते हैं.

अब मैं आपको अपनी आप-बीती बताने जा रही हूँ और ये भी कि कुछ पाने का लालच क्या-क्या गुल  खिलव सकता है, काम वासना कहाँ से कहाँ तक ले जा सकती है और कुछ पाने के चक्कर में क्या क्या नहीं देना पड़ सकता है. यह बात तब की है जब मैं १२  वी क्लास मैं थी. हमारे घर के ठीक सामने वाले मकान में एक परिवार में दो खूबसूरत लड़के रहते थे, दोनों ही देखने में किसी फिल्म अभिनेता से कम न थे और न ही इधर उधर की बातों से उन्हें कोई लेना देना था, बस अपने काम से काम और उनकी यही बात मुझे सबसे अच्छी लगती थी.मोहल्ले की  सभी लडकिया उन्हें पटाना चाहतीं थीं क्योंकि उनमे  कुछ अलग ही बात थी। मैं भी उन लड़कियों  में से एक थी  और उनके  बारे में सोचकर कर ही मेरी चूत के रेशमी बाल गीले हो जाया करते थे. उनके लंड की चाहत में मै अन्दर अन्दर घुली जा रही थी और रात दिन बस एक बार उनमे से कम से कम किसी एक एक लंड हाथ में लेकर, उसे मुह में लेकर चूसने का, उनसे चुदवाने की कल्पना किया करती थी, पर कोई मौका ही नहीं मिल रहा था बात करने का, उन्हें अपनी इच्छा बताने का.

किस्मत हमेशा एक सी नहीं होती, जब मेहरबान होती है तो बिन बताये ही सब कुछ दे  देती है. आज मेरी किस्मत भी मेरे साथ थी, कम से कम मुझे तो यही लग रहा था पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और जो किस्मत को मंजूर हो उस मेरा, मेरी चूत का तो कोई बस चल नहीं सकता सो चला भी नहीं. हर रोज की तरह उस  दिन भी मैं जब अपनी छत पर घूम रही थी  और उनमे से एक अपनी छत पर, मै टकटकी लगाए एक टक उसको देख रहा थी  तो एकदम उसने मुझे देखा और मै मुस्कुराने लगी और वो भी प्रतिउत्तर में मुझे देख कर मुस्कुराये बिना न रह सका. मै समझ गयी की यहाँ मेरी दाल गल सकती है और मेरी तमन्ना पूरी हो सकती है. मुझे रह रह कर अपने शारीर में सिरहन सी महसूस होने  लगी, मेरे अंग अंग से आग बरसने लगी, चुचियों सख्त होने लगीं, चूत की बाहरी पंकरियो में हलचल होने लगी, और दिमाग में उसके लंड का ख्याल घूमने  लगा, न जाने वो मानेगा भी की नहीं, कितना बड़ा और मोटा है इस सुन्दर से दिखने वाले लड़के का लंड, क्या इसी की तरह इसका लंड भी हट्टा कट्टा और रसीला है, और ऐसे न जाने कितने ख्याल एक एक कर के आने जाने लगे. वो भी कभी मुझे देख रहा था और कभी धीरे से अपने लंड को टटोल रहा था, लगता था उसके दिमाग में भी मेरी चूत को लेकर, मेरे उभारों और चुचिओं को लेकर उथल पुथल हो रही थी.
इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था, मैंने अपने मन के भावों को छुपाते हुए उसकी तरफ पत्थर में लपेट कर एक कागज़ का टुकड़ा भेजा जिसमे लिखा था " मै अनु , तुम मुझे बड़े अच्छे लगते हो, मुझसे दोस्ती करोगे ? शायद मेरी पहल का ही इन्जार कर रहा था, उसने भी झट से उत्तर दिया, मै मनु, तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो पर कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई, तुमसे दोस्ती करके मै अपने को धन्य समझूंगा. धीरे-धीरे हम एक दूसरे से प्रेम-पत्रों से बात करने लगे क्योंकि उन दिनों बात करने का और कोई अच्छा साधन नहीं था। अब तो हर रोज ही हम लोग छत पर  मिलने लगे और बस एक दूसरे को हसरत भरी आँखों से देखते रहते और मन ही मन उस दिन की कल्पना करते रहते जिस दिन हम एक दूसरे की बाँहों  में समां पाएंगे, मै उसके लंड को धीरे धीरे सहला हुए अपने मुह में भर लुंगी और वो मेरी भुर के काले काले बालों के बीच में से अपने होटों और अपनी जीभ से मेरी चूत के दरवाजे पर दस्तक देगा.

आखिर वो दिन आ ही गया .... इन्तजार ख़तम हुआ, मन में ख़ुशी  भी थी और डर भी, चुदवाना भी चाहती थी और प्रेगनंट होने का डर भी सता रहा था. जीतना तो चुदने चोदने के खेल ने ही था, सो प्रेगनंट होने का डर जाता रहा और मै सजधज के, अपने भुर के रेशमी बालों को saaf करके रात की प्रतीक्षा करने लगी. हुआ यूँ की एक दिन उसने मुझे रात को मिलने के बारे में पूछा। मैंने तुरंत उससे उस रात उसके घर आने की बात लिखकर चिठ्ठी उसके दरवाजे पर फेंक दी, वो चिठ्ठी पड़कर फुला नहीं समां रहा था और मैं, मैं तो मन ही मन किसी मोरनी क भांति नाच रही थी, मानो जिंदगी की सबसे बड़ी ख़ुशी मिल गई हो, किसी ने कुबेर का खज़ाना दे दिया हो,  उसके लंड की गर्मी को महसूस करना, उसको चूमना चाटना, अपनी चूत पर उसके लंड को रगड़ना  का ख्याल किसी कुबेर के खजाने से कम भी तो नहीं  था.

उस दिन तो उसका लौड़ा भी  अलग ही तेवर में दिखा   रहा होगा । तन्तानाया हुआ खम्बे की तरह खड़ा उसके पजामे से  बार बार बहार आ रहा होगा, मेरी गुलाबी चूत के दर्शन करने, मेरे मुह में समां जाने के लिए और मेरी उभरी हुई मस्त गांड में धकापेल करने के लिए. तभी तो वो बार बार छत पर आ जा रहा था. मै उसकी मनोदशा देखकर बहुत खुश थी और बार बार अपनी ब्रा के अन्दर से हाथ लेजाकर अपनी चुचिओं को मसल रही थी, उस दिन की रात भी कितनी बेरहम थी, होने को ही नहीं आ रही थी....

ख़ुशी-ख़ुशी में मैंने रात को खाना भी नहीं खाया। धीरे-धीरे रात के बारह बज गए। मैं रजाई से निकल कर उनके घर के बराबर वाली दीवार से उनकी छत पर पहुँच गयी । उनकी छत पर एक कमरा था जिसमें वो पढ़ा करता था । उसी कमरे में मिलने के बारे में मैंने चिठ्ठी में लिखा था। जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाना चाहा तो दरवाजा पहले से ही खुला मिला। उस वक़्त मेरी खुशियाँ सातवें आसमान पर थी। कमरे में काफी अँधेरा था, मैं धीरे-धीरे उसका नाम पुकारते हुए उसके बेड पर पहुँच गयी  जिस पर की रजाई में कोई सोया हुआ था तब मुझे लगा कि वो शायद शरमा रहा  है और सोने का नाटक कर रही है। हम दोनों का ये पहला ही अनभव था, पर मुझे शर्म से ज्यादा चुदने का उत्साह था और उसे शर्म के साथ साथ  चोदने का . मैं उसके बराबर में जाकर लेट गयी और धीरे धीरे उसके गालों को सहलाने लगी. अब उसकी शर्म भी फु कर के उड़ गई और उसका हाथ मेरे मोमों पर आ गिरा. वो उन्हें बेसब्री से मसलने लगा, उसका लंड मेरी झंगो से टकरा टकरा कर वापस लौट जाता मानो विनती कर रहा हो मुझे अपनी टांगो के बीच में समां लो.
उसने दूसरे हाथ से धीरे धीरे मेरी गांड को सहलाना शुरू कर दिया, मै आनंद  और मस्ती में पागल हुए जा रही थी, मेरा हाथ उसके लंड को टटोल रहा था, पजामे के अन्दर एकदम फुंकारते सांप की  तरह, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मै तो  हाथ में लेकर उसके लंड से खिलवाड़ करना चाहती थी, उसे किसी आम के तरह चूस चूस कर उसका सारा रस पी जाना चाहती थी सो बिना समय गवाए मैंने  पजामे का नाड़ा खोल दिया, और उसमे से बहार झाकते तनतानते  लंड को अपनी मुट्ठी में जोर से भीच लिया, उसने एक बार तो उफ़ क मगर फिर मेरी चुचियों और गांड को सहलाने पुचकारने में लग गया. मै उठी रजाई उठाई और गप से उसका लंड निगल  गयी, उसकी चीख   निकल गई, पर मुझसे इन्तजार ही नहीं हो रहा था, सो मैंने तो अपने दातों से जोर से उसका लौडा काट लिया, वो दर्द में उई मा करके चिल्लाया तो मुझे होश आया और मैंने धीरे धीरे अपने होटों से उसको ऊपर नीचे करना शुर किया, उसे मजा  आ रहा था और उसकी पकड़ मेरी गांड के उभारों पर बदती जा रही थी. पर मैं तो  अपनी   ही मस्ती में उसका बड़ा सा लंड चूस चूस कर अपनी चूत की आग को और भड़काने में लगी थी.

अब उसका लौड़ा उसे और इन्तजार करने की इजाजत नहीं दे रहा था, वो धीरे से उठा और मुझे कंधो से पकड़ कर ऊपर उठाया, मैंने सोचा अब वो मेरी चूत को चाटेगा, अपनी जीभ को  मेरी चूत के अन्दर तक घुसा देगा, अपने लंड से झांगो की दीवारों से टकरा टकरा कर मेरा बैंड बजा देगा, पर जब उसने ऐसा कुछ नहीं किया तो  मेरा नशा उतरने लगा, मैं tadafne लगी और अपने ही उन्ग्लिओं को चूत पर लेजाकर उसको सहलाने लगी. मुझे समझ नहीं आ रहा था उसका बर्ताव, मैंने सोचा शायद वो नर्वस होगा, मैंने उसका हाथ पकड़ा और अपनी चूत के पास ले गई, उसकी एक ऊँगली अपनी फुद्दी में दाल दी सोच वो excited होकर अपना लंड मेरी भुर में दाल देगा... पर उसने ऐसा नहीं किया,वो तो और जोर जोर से मेरी गांड को दबाने लगा, उसके छेद में अपनी ऊँगली डालने लगा, मेरी दर्द से चीख निकल गयी, मै समझ गयी उसको मेरी चूत में   नहीं मेरी गांड में  जादा दिलचस्पी है. मेरा काम का भुखार उतारने लगा, चुदवाने की  सारी कल्पना पर पानी फिर गया, पर मजबूरी थी , मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था सो मैंने कोई विरोध नहीं किया और जो वो कहता गया वो करती गयी, जो करता गया गया वो सहती रही.

उसने धीरे धीरे मुझे नंगा कर दिया और बिस्तर पर उल्टा लिटा दिया। उस वक़्त मैं सोच रहा थी  कि जो भी होना है, अब जल्दी हो जाए ! मेरा मन खिन्न हो रहा था, मुझे सिर्फ गांड मरवाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी...मै तो चुदना चाहती थी फिर भले ही वो मेरी गांड मारे या अपनी मुठ.....  सो मै चुपचाप अपनी चूत को अपने ही  हाथों से दबाये उल्टा लेटी रही.  वो भूखे कुत्ते की तरह मेरी गांड पर टूट पड़ा, दर्द के मारे मेरी चीख निकल गई. पर वो कब रुकने वाला था, जैसे जैसे मेरी चीख की आवाज बदती जाती उसके झटके से मेरी गांड और फटती जाती, उसने दोनों हाथों  से मुझे कमर से पकड़ रखा था और जोर जोर से गांड में अपने लंड को अन्दर बहार कर रहा था, मानो किसी लड़की की  नहीं किसी कुतिया की  गांड मार रहा हो.     मैंने सुना था कि जब लड़की के साथ पहली बार सेक्स करते हैं तो उनकी चूत से खून निकलता है, आज मेरी गांड कि हालत कुछ ऐसी ही थी। मेरी गांड से खून निकल रहा था लेकिन वो खून की परवाह न करते हुए धक्के मारता ही रहा। उसका लंड जल्दी से झड़ने का नाम नहीं ले रहा था क्योंकि अभी वो जवान था, पहली बार किसी की गांड मर रहा था। लगभग बीस मिनट बाद उसका लंड से पिचकारी जैसे पानी निकला और वो निढाल होकर मेरी गांड के  ऊपर ही सो गया। मै कुछ देर इन्तजार करती रही और फिर  उसे बराबर में धकेल दिया. अनमने मन से अपने कपडे पहने, और चुपचाप अपनी चूत का पानी चूत में ही लिए अपने घर लौट आई.
इस दिन के बाद मैंने मन ही मन सोच लिया  अब कभी किसी मर्द से चुदवाने का ख्याल भी अपने मन में नहीं आने दूंगी, पर मन तो मन है कब फिसल जाये कोई नहीं जानता. इस बार जो मेरा मन फिसला तो बस ऐसे की आजतक भी उसके भाई के साथ अटका हुआ है, क्या चोदता है.... उफ्फ्फ तौबाआ..... फिर कभी बताउंगी.....

मुझे जरूर बताना आपको यह कहानी कैसी लगी।

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